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होरी नाहक खेलूँ मैं बन में, पिया बिन होरी लगी मेरे मन में।।
सूनौ जगत दिखात स्याम बिनु, विरह-बिथा बाढ़ी तन में।।
काम कठोर दवारि लगाई, जिय दहकत छिन-छिन में।।
‘हरीचन्द’ बिन बिकल बिरहिनी, बिलपत बालापन में।।