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- 1.फागुन तोही सें, मनाऊँ गजानन्द।
- 2.श्री गणेश अहिवात दै हमकों, फागुन पिया सों मनावत री।।
- 3.सुमंगल दाहिने, होरी खेलत राम नरेश।
- 4.रँगीले रंग महल में, खेलि रहे दोऊ फाग।।
- 5.दशरथ-सुत राज दुलारे, खिलन कैसें पाऔगे होरी।।
- 6.दशरथ-सुत राज दुलारे, जनकपुर खेलन आये होरी।
- 7.दशरथ-सुत राज छबीले छैल, होरी खेलत आवैं री।
- 8.अवध में रघुवर धूम मचाई, होरी खेलत चारौ भाई।
- 9.श्रवण सुनत कटि जात पाप जहँ, सीताराम खेलैं होरी।।
- 10.ये दोऊ, खेलत फूलि फाग री।।
- 11.काम प्रताप बड़ाई, कहत कछु बनि नहीं आई।।
- 12.बन कों चले दोऊ भाई, इन्हें कोई रोकौ री माई।
- 13.आज सदा शिव खेलत होरी।
- 14.मची कैलाश सुहाई।।
- 15.होरी खेलें महादेव, जटा में विराजत गंग।
- 16.होरी शंकर खेलें भवन में, बारे मितवा तू कर लै बहार।
- 17.आजु कैसौ बनौ ब्रजराज, छैला होरी कौ।
- 18.आजु बसन्त बना बनि आयौ।।
- 19.नेह लग्यौ मेरो स्याम सुँदर सौं।।
- 20.मालिनि मैं ना बसन्त बँधाऊँ, मेरौ पिया परदेश गयौ।।
- 21.हरि नहिं आये बसन्त लग्यौ री।।
- 22.जुबनबा मद के भरे श्याम, आवेंगे कौन घरी।।
- 23.मोहि देत दरस नहिं एक बार, मेरौ मन नहिं मानत करत रार।।
- 24.मानौ या न मानौ मेरी सुनौ या न सुनौ,
- 25.सखी जा फागुन में, सैंया अजहूँ न आयौ री।।
- 26.मै तौ पिया की बाट देखौं कब की खड़ी,
- 27.ऐसे कहाँ मेरे भाग, पिया संग खेलों होरी।।
- 28.मैं पिय प्यारे बिन, बन बन फिरत उदास री।
- 29.जो तुम श्याम कूबरी सों राजी, कूबरी आजु कहाँ तें ल्याऊँ।।
- 30.ऊधौ जब सों कियो हरि मथुरा गमन, मन पीर न जाति सही।।
- 31.जा काहू कों मिलहिं श्याम, कहि दीजौ हमारी राम राम।।
- 32.ऊधौ! बावरे भये हौ, बावरे भये मोरी जानि।।
- 33.ऊधौ किनके भये हैं, मोहन माधव मीत।।
- 34.होरी आजु जरै चाँहि कालि जरै, मेरौ कुँवर कन्हाई मोहि आनि मिले।
- 35.बन बोलि कोइलिया शोर करै, पिया पिया पपैया रटि भोर करै।।
- 36.बहुत दिनन के रुठे श्याम, चलौ होरी में मनाय लावें रे।।
- 37.भली भई यह हो होरी आई, घर आये घनश्यामा।।
- 38.तू बड़ भाग सुहाग भरी, ब्रजराज तेरे घर आवत है री।।
- 39.बाँसुरी बन बाजि रही री।।
- 40.मैनें जब तें सुनी मुरली की भनक, मेरौ मन गयौ हाथ सों ए री गुइयाँ।।
- 41.अब तो सखी फागुन रितु आयौ, ढफ गोपाल बजावै।
- 42.छबि निरखन कों चली री सखी, बंसी जमुना पै बाजि रही।।
- 43.आई री ढफ बाजन लागे, माती होरी।।
- 44.आयौ फागुन मास सखी, उमग्यौ मन मेरौ।।
- 45.आना रे हमारी श्याम गलियाँ।।
- 46.मनमोहनि रिझवारि री, तेरे नैन सलौने।।
- 47.मै तो जानति नाहीं वाकौ नाम गाम,
- 48.मै तो जानति नाहीं वाकौ नाम गाम,
- 49.घूंघट कौन करै, नैना मद सों छके मतवार।।
- 50.आजु श्याम के मैं अंक लगौगी, कलंक लगै तौ भलें ही लगौरी।।
- 51.डगर मोरी छाडौं श्याम, बिधि जावोगे नैनन में।।
- 52.हमें घर जान दै, नई होरी के खिलैया रे।।
- 53.कान्हा तुमहीं का ब्रज के इजारदार, मो पै रँग छिरकत हौ बार बार।।
- 54.कहा बानि परी सैयाँ तोरी रे, मोसों खेलन आयो होरी।।
- 55.ऐसौ रँग न डारौ मोपै सुघर श्याम, मेरो बार बार तोकौं है प्रनाम।।
- 56.अँखियन भरत अबीर, बीर मोरी पीर न जानैं।।
- 57.री! कछु पीर न जानै, अँखियन भरत अबीर।।
- 58.लाल मोरी अँखियन करकै, ऐसौ न फेंकौ गुलाल।।
- 59.लला हो रँग की चोट मेरें भारी लगै,
- 60.कौन जाय ब्रज में दधि बेचन, रँगि डारी चूनरि सारी।।
- 61.आली! कौन चलै ब्रज की गलियन, बनवारी रारि करै।।
- 62.बाट चलत या अनौखे लला, रँग चूनरि बोरि दई।।
- 63.सखी री! या ब्रज में अब कैसें बसैं, अनरीति न जाति सही।।
- 64.मेरें बरजोरी अबीर लगायौ, लँगर ब्रजराज दुलारौ।।
- 65.मत मारौ पिचकारी श्याम! अब देंउगी मैं गारी।।
- 66.पालागौं कर जोरी, श्याम मोसों खेलौ न होरी।।
- 67.बरजौ री जसुदा जी कान्हा।।
- 68.अब न बनें ब्रज कौ बसिबौ, मोसों बरजोरी कान्ह करै।।
- 69.रँग डारौ न श्याम सनेही, चुनरि मोपै है एक येही।।
- 70.सखी मेरे नैननि में, मनमोहन लागि रह्यौ।।
- 71.बैठी रहौं तो रहै ढिंग ठाड़ौ, जो उठि धाऊं तौ आगें ही आवै।।
- 72.आजु सखियां रहीं न मेरे संग में, कन्हैया ने घेरि लई कुँजन में।।
- 73.कपट कछु जा दइया मारे के मन में, मोसें बातें करत सैनन में।।
- 74.जो तुम मोसों बरजोरी करिहौ, तिहारी सों सासु हमारी लरिहै।।
- 75.होरी नंदनंदन खेलें, अब कैसे लाज रहै।।
- 76.लाल बिहारी ने मेरे, भरि दियौ दृगनि गुलाल।।
- 77.नैननि अबीर न डारौ, दरस के ये अधिकारी।।
- 78.सांवरे रंग में रंगि डारी।।
- 79.होरी नहिं खेलों ननद रिसावै।।
- 80.मैं तो लाज की मारी न मटकी,
- 81.ऐसी को खेलै तो सों होरी।।
- 82.चंचल चपल चबाई, श्याम तैंने क्यों मारी पिचकारी।।
- 83.खेलौंगी ना तोसों होरी स्याम।।
- 84.सारी भींजि गई मोरी कुसुमी चूनरि,
- 85.मारि गयौ पिचकारी, सँवलिया सों मैं सखि हारी।।
- 86.मोसों जिनि अटकै रे छबीले छैल, मेरे सिर पै गगरि जिनि रोकै गैल।।
- 87.होरी है कै राम राज रे।।
- 88.बाट चलत सिगरी मोरी सारी, मोहन रँग बोरि दई।।
- 89.श्याम तेरी होरी में कछु टौना।।
- 90.भली होरी में चोरी, सीखे श्याम भली।।
- 91.मोहनी मुसक्यानि सखी, लागै सोई जानै।।
- 92.रँगी मैं तौ रँगन तिहारे, और रंग जिनि डारौ।।
- 93.बेदरदी काढ़ि दै, मेरी अँखियन करकै गुलाल।।
- 94.लाल मुख निरखन दै, मेरी अँखियन भरौ न गुलाल।।
- 95.होरी खेलत मेरौ मुख मति मीजौ, चेरी मैं तेरी भई रे भई रे।।
- 96.रंग छिरकौ न स्याम बिहारी, मानौ कही जरा जाओ ठहर।।
- 97.मति मारौ केसरि पिचकारी।।
- 98.मानत नाहिं निहोरें, बिना रंग मैं हरि बोरें।
- 99.जसुमति-नंद-दुलारौ, नयौ ब्रज कौ रखवारौ।।
- 100.साँवरौ मोहि दै गयौ गारी।।
- 101.ऐसौ ढीठ जसुमति कौ लँगर, रँग मोपर डारि गयौ।।
- 102.मैं तो याही छैल सों हारी, मारत मोरे नैननि में पिचकारी।।
- 103.होरी खेलन कैंसे जाऊँ सखी री, हरि के हाथ पिचकारी लसति है।।
- 104.मदमातौ छैल ठाढ़ौ रोकै गैल, कैसे जाऊँ री सखी आज पनियाँ भरन।।
- 105.सखि कछु जतन करौरी, स्याम पनघट अटक्यौ री।।
- 106.देखौ स्याम मेरी छाँड़ों गैल, न तौ मारोंगी सैनन में।।
- 107.कैसें रोकत कन्हैया मोहि बार-बार,कहा तुम ही रँगीले बहार यार।।
- 108.मोय साँवरे ने गारी दई, दई मैं तो कछु ना कही।
- 109.चहुँ ओर नदिया रंग सों भरी, निकसन कों डगर ना रही।।
- 110.मैं तो नाहीं नाहीं करति रही, पिचकारी मेरें काहे कों दई।।
- 111.जुवनवा बैरी भये, कैसें दधि बेचन ब्रज जाउँ।
- 112.जहाँ जाउँ तहाँ कृष्ण कन्हैया, लियें पिचकारी डोलै।।
- 113.है अनरीत बड़ी या ब्रज में, कोई न जाहि गुपालहिं हटकै।।
- 114.मति जाउरी आजु कोऊ पनियाँ भरन, मग रोकत ढ़ोटा श्याम बरन।।
- 115.जिनि जाउ री आजु कोऊ पनियाँ भरन,
- 116.ब्रज में खिलन मति जाउ, तुम पै कोऊ रँग डारि दैहै।।
- 117.तुमहीं कहा ब्रज में अनोखी भईं,
- 118.चली चलि यों ही बकै दैया मारौ, होरी खेलै श्याम बंशी वारौ।।
- 119.श्याम होरी खेलन हमसों न आवै, जासों कहियो पलटि घर जावै।।
- 120.जा सों बिन होरी खेलैं न जाऊँगी,
- 121.चलि वृषभानु किशोरी, श्याम सँग खेलन होरी।।
- 122.साजि कैं जो चली, रँगीली खेलन होरी।।
- 123.आवौ गुपाल सिंगार बनाऊँ, मुतियन माँग सिंदूर भराऊँ।।
- 124.सब विधि श्याम सिखायौ, तेरे मन एक न आयौ।।
- 125.ब्रज कुंजन में जाइ पकरि लाईं, नंद को लाला।।
- 126.होरी हो ब्रजराज दुलारे।।
- 127.होरी हो ब्रज राज दुलारे।।
- 128.होरी खैलों न काहे बरायें जात, का सखियन लखि घबराये जात।।
- 129.श्याम होरी खेलन आए हमारे।।
- 130.अबीर मलौंगी कपोल तिहारे, जसुदा लाल ब्रजराज दुलारे।।
- 131.आजु जाहि रँग में बोरों री, लगौ है आजु हमारौ दाव री।।
- 132.पिचकारी सखी राधामोहन की, छीनि लो, छीनि लो, ए छिना लो।।
- 133.नई रे नारि नये जौवन बारी, झूमति गागरि लै चली।।
- 134.धरैं शीश रँग भरीं मटुकियाँ, फिरहिं बाल ब्रज की गोरी रे।।
- 135.बाबरी बनि आईं, तुम्हें होरी कौनें खिलाई।।
- 136.आजु हों होरी हरिहिं खिलाऊँ।।
- 137.कौन खिलारिन खेलैगी होरी।।
- 138.बनि आईं हैं चातुर नारि, होरी रंग भरी।।
- 139.आजु सखी ब्रज ओरी, साँवरौ खेलत होरी।।
- 140.ब्रज में दोऊ खेलत होरी।।
- 141.कर लियें अबीर गुलाल, साँवरौ खेलत होरी।।
- 142.आजु नगर में धूम मची है, हो होरी खेलत कुँवर कन्हाय।।
- 143.लाल ही लाल भये, होरी खेलि रहे नन्दलाल।।
- 144.श्यामा श्याम सों होरी, खेलत आजु नई।।
- 145.ब्रज में हरि होरी मचाई।।
- 146.होरी खेलत विपिन बिहारी, लियें रँग की पिचकारी।।
- 147.रँग डारें मोहन हम पै भागौ जाय, कोऊ लीजो डगरिया घेरि री।।
- 148.यह न चीर की चोरी, सम्हरि नेंक खेलियो होरी।।
- 149.होरी खेलै श्री राधे-नवल री सजनी, तट जमुना जी के तीर।।
- 150.ऐसी होरी है रही ब्रज में, श्याम राधिका सों खेलत होरी।।
- 151.पिय मनमोहन के संग, राधा खेलत फाग।।
- 152.चहुं दिसि धूम मची है, हो हो होरी सुनाय।।
- 153.अबकी फाग कौ रंग न बूझौ, धूम मची है श्री वृन्दावन में।।
- 154.उठौ गोरी माँग सम्हारौ, क्या बैठी मन मार।।
- 155.नित उठि मान मनावै प्यारी, नित उठि मान मनावै।
- 156.चहु दिसि मैं फिरि आई, लाल नहिं देत दिखाई।
- 157.सखी कहौ कैसे धीरज आवै, मोहि कोकिल बोल न भावैं।
- 158.दृगन झरना झर लायौ, साँवरौ अजहूँ नहिं आयौ।।
- 159.मेरा पिय बिन जोबन करत जोर, मैं तड़प तड़प कर करूँ भोर।।
- 160.पिय बिनु नहिं मानें, उमग्यौ जोबन जोर री।।
- 161.पिय अजहुँ न आये, बीती जाति बहार री।।
- 162.सखी देखौ आयौ है जुलमी फगुनवा, कब हुइ है हमरौ गवनवा।।
- 163.ननदिया मोहि ना सतावौ, मैं तौ विरहा की मारी मरी।।
- 164.कालि कहाँ हे कन्हाई, हमें राति नींद न आई।।
- 165.राति पिया चोरी चोरी गये, मेरे मन में रही एक बात।।
- 166.राधे नंदनंदन समुझाय रहीं, होरी खेलौ फागुन रितु आय गई।।
- 167.गगरिया घर धरि आऊँ तौ लौं, ठाढ़ै रहियो माखनयार।।
- 168.गोरी बाँके जुबनवा छिपायें जाति, मन रसिक छैल के लुभायें जाति।।
- 169.अब मैं कैसें निकसों अँगनवा, गुइयाँ मेरौ छैला निहारै जुबनवा।।
- 170.नाहक सैया मोहि गरवा लगावत, मैं तो उमरिया की थोरी।।
- 171.अँगिया बैंगनी लपिटानी, गोरे गात।।
- 172.अँगिया ना छुऔ, मैं तौ करोंगी कपोलनि लाल।।
- 173.दैया मोरी अँखियन परि गयौ, ऐसे गुलाल खिलैया।।
- 174.प्यारी होरी है कैं जोरी।।
- 175.लागी री साँवरे की मोरी।।
- 176.जसुदा तेरौ कान्ह चबाई।।
- 177.भलौ री पेच तेरे रंग रस कौ, तेरौ खेल मो करिजवा में कसकौ।।
- 178.साँवरे के चरित्र सुनौ री।।
- 179.होरी खेली कहाँ जासों सारी फटी।।
- 180.श्यामा ब्रज खेलति होरी।।
- 181.श्री वृषभानु नवल नागरि सों, खेलत रंग रह्यौ री।।
- 182.अरी उठि देखि सखी, होरी मचि रही तेरे द्वार।।
- 183.कालि होरी गये हारि श्याम, आजु तुम फिरि आये।।
- 184.जतन बिन मिरगा नें खेत उजारौ।।
- 185.करिबे कौन बहाना, गवन हमरौ नगिचाना।।
- 186.चेतुरी मैं महा मद माती।।
- 187.नैहर में दाग लग्यौ चुनरी।।
- 188.आई गवनवा की सारी, उमरि अजहूँ मोरी बारी।।
- 189.यह दिन चार बहार री, पिय सों मिलि गोरी।।
- 190.बीती अवधि तेरौ खेल न हृ है, जुबना अकारथ काम न ऐहै।।
- 191.क्या रे गुमान करै जिन्दगानी का।।
- 192.देखौ सखी कैसा ये देश निगोड़ा, सारे जग में होरी या ब्रज में होरा।।
- 193.काहे को मान करत जोबन को, खेलन निकसी होरी रे गुइयाँ।।
- 194.कैसे मैं होरी खेलौ पिया संग, दुविधा रारि मचाइ रही रे।।
- 195.जामें आवागमन लागी डोरी, हमारें को खेलै ऐसी होरी।।
- 196.होरी खेलैं चतुर सुजान, आतमराम से।।
- 197.देख ली हरि होरी तुम्हारी।।
- 198.नाथ मेरा क्या बिगड़ेगा, जायगी लाज तुम्हारी।।
- 199.साँबलिया तू बेगि खबरि लीजो मोरी, मैं तौ शरणागत हरि तेरी।।
- 200.प्रभु तेरी महिमा कौन बखानी, मूक भई सब बानी।।
- 201.विचित्र वृतान्त बनायौ, आनन्द मंगल छायौ।।
- 202.तन में अस रंग रचौ री।।
- 203.घोल री मो पै रंग की घोला घोल, सासु सुनै देयगी बोल री।।
- 204.कान्हा रे बरजि हारी तुमकों।
- 205.मेरौ अब कैसें निकसन होइ री गुइयाँ, होरी खेलत कन्हैया।।
- 206.रँग न डारि जसुमति के लाल, मोरी रंगि गई चूनरि सारी रे।।
- 207.होरी खेलि आये हौ तुम, होरी खेलि आये हौ।।
- 208.ऐसी चतुर ब्रज नारि, रंग में है रहीं बौरी।।
- 209.ऊँचौ है गोकुल गाँव, जहाँ हरि खेलत होरी।।
- 210.होरी नाहक खेलूँ मैं बन में, पिया बिन होरी लगी मेरे मन में।।
- 211.कासौं कहौं मैं जिय कौ हाल, मोहि कीन्ही साँवरिया ने बावरी।।
- 212.अबकी होरी मैं खेलौंगी डटिकैं, जो श्याम आवेंगे ब्रज में पलटिकैं।।
- 213.मन मेरे की आसा पूजी, आयौ मास फागुन कौ नीकौ।।
- 214.मानों रे तुम्हारी ना मैं बतियाँ,
- 215.निर्दयी संग खेली होली, श्याम मोसां करौ न ठिठोली।।
- 216.साँवरा कहीं रम रहा माई।।
- 217.अंजनी सुत प्रभु मन भायौ।।
- 218.लाल गुलाल गोपाल हमारी, आँखिन में मति डारौ रे।।
- 219.प्रीतम सुधि बिसराई, हमें ऐसी होरी न भाई।।
- 220.फागुन मस्त महीना, पिया बिन धड़कत सीना।।
- 221.लाल फिर होरी खेलन आओ।।
- 222.आज श्याम सैं मैं बैर करूँगी।।
- 223.कान्ह तोहि ऐसी मति कौने दई।।
- 224.किस घर दीन्हों बकस मेरी माय, मेरा बाला जुवनवा यांही जायरे।
- 225.घर अँगना न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै।।
- 226.सांवरे तोसों विनय हमारी।।
- 227.खेलत फाग किशोरी, श्याम मुख चन्द्र चकोरी।।
- 228.नयनों के डोरे लाल, गुलाल भर खेली होली।।
- 229.जिन मोरी वारे सौ वहियाँ गही, मैं तो उनहीं सों फाग मचाऊँगी।।
- 230.काहे हमसों रूठे विधाता, गुण अवगुण के हो तुम दाता।।
- 231.जल तन शीत सतावे, निठुर तोहि लाज न आवै।।
- 232.आइजा बलम तू हमारेई डेरे।।
- 233.मोरे पिय को जोबनवा ढ़रकि जात, एहो कासें कहों मैं जिय की बात।।
- 234.खेलत श्याम श्यामा फाग, बृज होरी की धूम मची।।
- 235.बिहारी जिन मारो घूँघट पिचकारी, मोहि जान दै घर बलिहारी।।
- 236.मोरे रंगभरी पिचकारी मारी, बाट चलत या अनोखे लला।।
- 237.रंग डारत कजरा ढ़रकि गयो।।
- 238.प्रिय देखौ बन-छबि निहारि, बारबार यह कहति नारि।।
- 239.राधे जू आजु बरनौ बसन्त।।
- 240.नन्द नदन वृषभानु कुंवरि सों, खेलत रंग रह्यो।
- 241.आज मच्यो बृज फागु री, चलु विलम्ब न कीजै।।
- 242.आज बृज खेलत होरी, राधे संग नन्दलाल।।
- 243.उमड़े जोवन पर रंग न डारिए, जो मने करूं तोसौं बार-बार।।
- 244.आज होरी खेलत देखी छवि जो मोहन की, लागी सुन्दर मेरे मन में निपट।।
- 245.मान न करि वृषभान किशोरी, कृष्ण कुंवर जी से खेलत होरी।।
- 246.होरी ख्ेलन के लियें नन्दलाल, मग नाचत आवत मटक मटक।।
- 247.रंग डारे रे कन्हैया मोपे मटक मटक, ऐसो ढीट लंगर नहिं मानत हटक।।
- 248.यशुमति करति दधि मंथान अंक में,
- 249.पूजन गौरि चलो सिय प्यारी।
- 250.कन्हैया प्यारे अब न खेलूँ तोसे होरी रे।।
- 251.बेदरदी कान्हा काहे कों लगाई मुख रोरी।।
- 252.बेदरदी कान्हा काहे कों लगाई मुख रोरी।।
- 253.कैसी करो )तु बैरिन आई।
- 254.आये सब क्षीर सागर तीर विधि महेश
- 255.दरशन करूँ भर नैन सखीरी।।
- 256.वरजौ नहिं मानत बार-बार।।
- 257.मेरा मन मोहना बंशीवाला,
- 258.रंग डारत लाज न आई, नन्दजी के कुँवर कन्हाई।।
- 259.का संग फाग मचाऊँ सखीरी, कुबजा संग गिरधारी रहत हैं।।
- 260.आई बसन्त बहार पिया रंग चुनरि हमारी।।
- 261.खेलें सन्त सभी मिल होरी।।
- 262.जाउ बलम जहाँ रैन गँवाई।।
- 263.रघुवर जी सौं कहियो मोरी।।
- 264.मैं जो उमरि की थोरी, पिया मेरो मानत नाहीं।।
- 265.मोहना मोहि आन ठग्योरी।।
- 266.होरी खेलत श्याम सों हारी।।
- 267.बरजो जशोदा अपने लाल कों, गारी देत मोहिं नई रे नई रे।।
- 268.फाग खेलन कों मेरो जिया चाहै, मैं वृज की कुंजन कों जाऊंगी।
- 269.पाँय परूँ कर जोरी, लँगर मोसे खेलो न होरी।।
- 270.रँग डारौंगी वाही पै जाने तोर्यौ है धनुक,
- 271.रंग हो हो, हो हो, हो होरियाँ।।
- 272.एक दिन राम आप बतरामें, कैसे भव कौ भार हटामें।।
- 273.नटवर गोपिन नाच नचावै, गलियन बीच घुमावै।।
- 274.माई लखि न परै यदुराई, सोवत सों जगि आई।।
- 275.केशव काहे कौं, तरसावै, हमें खान पान न सुहावै।।
- 276.दीजै मनुआँ लगाय, साँवरे सों यारी कीजै।।
- 277.नित्य मधुर ब्रज-धाम, खेल रहे हरि संग होरी।।
- 278.खेलत स्यामा-स्याम ललित ब्रज में रस-होरी।।
- 279.खेलत डोलै फाग री, दशरथ कौ छबीलौ।।
- 280.जा सों आवागमन मिट जावै हमें कोई ऐसी होरी खिलावै।
- 281.तोसों कहा कहों कुंज बिहारी रे, मोरी नई रे चुनरिया फारी।।
- 282.तुम तो बने सौदाई, जगत में हांसी कराई।।
- 283.नर समझत नाहिं अनारी।
- 284.नंद नंदन वृजराज सांवरे सों बाढौ है अधिक सनेह।।
- 285.कित जावोगे श्याम मेरे मलि रोरी।।
- 286.मद मातो रे कान्ह गलियन डोलै।।
- 287.कित गयौ री गुपाल मेरे मल रोरी।।
- 288.दरसन दै निकसी अटा में से।।