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रंग छिरकौ न स्याम बिहारी, मानौ कही जरा जाओ ठहर।।
हाथ लियें गोरी रँग की गहलना, सिर पै गागरि सोहति भारी।
सिर की गगरिया घरैं धरि आऊँ, तब मारौ रंग की पिचकारी,
मानौ कही जरा जाओ ठहर।।
बूंद परैं मोरी चुलिया नसैहै, भींजि जाय सिर चूनरि सारी।
घर जैहों तौ सासु रिसैहै, ननद सुनै देइ लाखनि गारी,
मोकौं दोस लगावै सारो नगर।।