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मैं तो लाज की मारी न मटकी,
सँवरिया ने सिरकी मटुकि मेरी पटकी।।
मैं जमुना जल भरन जाति, मेरी सासु ननद मोहि हटकी।
आवत देखि रसिक नँदनन्दन, सँग की सखी सब सटकी।।
मैं तो लाजि रही छिपि छिपि, अनबोलें चुनरि मोरी झटकी।
हाल बिहाल करी नँदनन्दन, भूलि गई घट घट की।।
तोरौ हरा दुलरी तिलरी मेरी, करकी चुरीं सब करकी।
कंचुकि फारि मरोरि दोऊ कुच, यहे बात मोहि खटकी।।