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दशरथ-सुत राज छबीले छैल, होरी खेलत आवैं री।
राजकुमार हजार संग लियें, रंग मचावैं री।।
कंचन की पिचकारी करन लिये, अति छबि पावै री।
उड़त गुलाल लाल रँग भीजैं, मन सां भावै री।।
ढफ मृदंग की धुनि मिलि अद्भुत, राग सुहावै री।
‘रतन हरी’ श्री अवध बिहारी, बलि बलि जावै री।।