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रँग डारौ न श्याम सनेही, चुनरि मोपै है एक येही।।
अपने बबुल के घर की चूनरि, सेंती बरसन तें ही।
आजु ननद ननदुइया बुलाई, पहनि लई धोखे ही।।
अबीर गुलाल छूऔ जनि हाथन, मलौ न अतर सन देही।
मैं तो बसी तेरी प्रीति सुगन्धनि, टरत न तन मन तेही।।
मैं तो रंगी तेरे रँगन साँवरे, जानत है जग एही।
ये तों रँग दुनियाँ कौ रे मोहन, का अस रंग रँगे ही।।
अपनी कृपा रँगनि मोहि रँगिये, ‘सूर’ श्याम तुम नेही।
हँसि हरि एक बार उर लागौ, मिटि जावै सन्देही।।