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दरसन दै निकसी अटा में से।।
कोटि रमा सावित्री भवानी तेरे निकसी अंग छटा में से।।
तू है श्री वृषभानु नंदनी, जैसे निकसी चन्द्रघटा में से।।
पुरूषोत्तम प्रभु यह रस चाख्यौ, जैसे माखन निकसो मठा में से