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मत मारौ पिचकारी श्याम! अब देंउगी मैं गारी।।
भींजैगी लाल नई मोरी अँगिया, चूनरि बिगरैगी सारी।
देखैगी सासु रिसावैगी मो पै, सँग की सखी सब न्यारी,
हँसैंगीं दै दै तारी।।
हाट बाट सबसों अटकत हौ, लै लै रारि उधारी।
कहाँ लौं तेरी कुचालि कहौं मैं, एक एक ब्रज नारी,
जानति करतूति तिहारी।।
मूठि गुलाल न मारौ दृगन में, दूखैगी आँखि हमारी।
‘नारायण’ न बहुत इतराऔ, छाँड़ौ डगर गिरिधारी,
अनौखे का तुमही खिलारी।।