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कन्हैया घर चालो गुइयां आज खेलें होरी।।
अपने री अपने मन्दिर सों निकसी कोई सांवल कोई गोरी।
एक से एक योवन मदमाती सबै वैस की थोरी।।
कोई चटकत कोई मटकत आवत कोई नाचत गति मोरी।
चमक दमक चपला सी चमकत झिझकत बदन मरोरी।।
बन्सी बजावे मनहिं रिझावे को असमंत्र पढ़ोरी,
सास ननद की चोरा चोरी सब मिल निकसि चलो री।।
कोई मृदंग कोऊ बीन साज लै बाजत है घनघोरी,
ढप धुकार धुमकति है चहुदिशि नाचत ताता थोरी।।
अबीर गुलाल उड़ावत आवत करि श्रृंगार सिगरोरी,
श्याम दास या छबि के ऊपर बार बार बलि जोरी।।