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खेलत स्यामा-स्याम ललित ब्रज में रस-होरी।।
राधा-संग सखी-सहचरि सब मिलि केसर -रंग -घोरी।
सुन्दर स्याम-बदन पर डारत भरि-भरि कनक कटोरी।।
प्रेम-रस-रंग-विभोरी।।
हेरि-हेरि हरि मुख पिचकारी छाँड़ि रहीं चहुँ ओरी।
पकरि हाथ सखियन मलि दीन्हीं मुँह गुलाल अरू रोरी।।
स्याम-मुख अरून भयौ री।।
देखि प्रसन्न वदन सखियन संग रंगिनि नवल किसोरी।
उमग्यौ हिय आनंद-सिंधु, हरि रँग दीन्हीं सब गोरी।।
सुरस-संग्राम मच्यौ री।।
बाजत ताल मृदंग, ढोल-ढप, सिंगा-बेनु ढपोरी।
गावत राग धमार नृत्य करि, कर अबीर की झोरी।।
पुकारत हो-हो होरी।।