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मैं जल जमुना भरन जाति ही, खैंचौ चीर हमारौ।
गागरि छीनि महीतल पटकी, अरु कंचुकी पट फारौ,
बहुरि तकि काँकर मारौ।।
गारी देत हरि लाज न आवति, तन कारौ मन कारौ।
खोलि खोलि घूंघट मारग में, सबरौ बदन निहारौ,
नहीं कोऊ बरजन हारौ।।
अब कैसे लाज बचै या ब्रज में, मोहन बैर सँचारौ।
‘हरिबिलास’हरि सखा संग लियें, घेरौ है जमुना किनारौ,
चलौ! नृप कंस पुकारौ।।