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लगौ फागुन )तु सुघर बसंत, अवध छवि छाई नवल अनंत।
मंजु कंजन में आइ इकंत, रच्यौ प्रभु फूल बाग भगवन्त।।
भरत लखन रिपु-दहन युत, मृदु-रज सरयू कूल।
खेलत फाग सिया रघुनंदन, सुरपति बरसत फूल,
विमल फूले )तुपति बन बाग ।। अवधपुर०।।
झाँझ ढफ ढोलक बजति मृदंग, मनोहर धुनि मुरली मुंहचंग।
संख बहु जलतरंग सारंग, बेनु बीना सितार गति मंद।।
नरनारी हिलमिलि सकल, नाचैं दै दै ताल।
कोटि कोटि रति-मदन-बदन-छबि, सीता-वल्लभ भाल,
गावते विविध रागिनी राग।। अवधपुर॰।।
मची होरी कौसलपुर बीच, रहीं बहु बाल गुलाल उलीच।
बदन मारें पिचकारी खींचि, कुसुम रँग बरसत है रही कींच।।
चोया चंदन अतर अति, लै सहाव गंभीर।
विविध सुगंध अबीर लै, मलैं सिया रघुवीर,
लखैं गुरुजन जिनके बड़भाग।। अवधपुर॰।।
मची घर घर होरी की धूम, परत जहँ सुख सागर मालूम।
निकट रघुवर के आवें झूम, मलैं रोरी गोरी मुख चूम।।
शोभित फाग समाज अति, जनकसुता रघुनाथ।
लखि लखि ‘दास गणेश’ युगल, सुख तन मन होत सनाथ,
रागिनी गावैं राग विहाग।। अवधपुर॰।।