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मधुपुरी आनन्द छाय रहे, मनहुँ हरि आजुहिं जनम लए।
प्रात उठि नगरी भ्रमण कियौ, राह में धोबी धुनकि दियौ।
कुबरी की पूजा लई, सबकों सुख दए।
उत अक्रूर कों भेजि कें, कंस को खबरि दए।।
खबरि जब कंस ने यह पाई, गोकुल से आए दोऊ भाईं
मल्ल की भई है तैयारी, द्वार पै झूमै गिरधारी।
पहलौ फाटक तोड़ि कें, पहुँचे जहाँ हरे।
हाथी कुबलिया द्वार पछारौ, कंस पै टूटि परे।।
कंस कों मंच से दै मारौ, तुरंत ही मारि करौ न्यारौ।
लाइ के खार में मुंह डारौ, मगन सब मरौ जि हत्यारौ।।
रानी सब रोई जबै, सबकों ज्ञान दए।
अत्याचारी जुलम मचायौ, हरि कों भूलि गए।।
कंस वध करि मोहन पहुँचे, जहाँ पितु मातु पड़े सोचें।
सबनि की बेड़ी काटि दई, लखन ही चरन की धूरि लई।।
मातु पिता अरू भ्राता दोऊ, इक मिलि आजु भए।
उग्रसेन कों गद्दी दैकें, जग जस लूट लए।।