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याही दरद सों भई जाति पियरी, कासों कहौं कोऊ न मानें सखीरी।
विरहा दरद कों वैद्य बुलाऔ, पकरि बाँह मेरी नबज दिखाऔ,
मेरे कसकै करेजवा में नैनों दी सैन।।
जावौ जी जावौ जी मेरे सैयाँ कों लै आवौ, तपस ताप मेरे जिय की मिटावो।
बहुत सखी गुन मानोंगी तिहारो, अबकी फागुन सैयाँ आवै जो हमारौ,
मै तो फिरि फिरि सुनों श्रवननि सों बैन।।