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दूरि करहु बीना कर धरिबौ।।
मोहे मृग नाही रथ हाँक्यौ, नाहिन होत चंद कौ टरिबौ।।
बीती जाहि पै सोई जानत, कठिन है प्रेम पास कौ परिबौ।
सुनुरी सखी वियोग श्याम के, सकत न नैन नीर कौ गरिबौ।।
जबतें बिछुरे कमल नयन सखि, कहियै धीर कौन विधि धरिबौ।।
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस बिन, सब झूठौ जतनन कौ करिबौ।।