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परसपर भेंटत नृप अनुराग।।
रंग पटल रस दोऊ दिश छाये, मानो खेलत फाग।।
इत अवधेश उतै मिथिला पति, मिलत प्रेम रस पाग।
जिमि रतनाकर मिलत महोदधि सकल सराहत भाग।।
वंश प्रसंश करत बंदीजन, गायक गावत राग।
”हरि विलास“ आकाश सुमन बहु, सुरपति वरषत लाग।।