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प्यारी लाजन सकुची जात।।
ज्यों ज्यों रति प्रति- बिंब सामुहे, आरसि माँह लखात।।
कहत लाख यह दूर राखिये, बल करि कर्षत गात।।
”हरीचन्द“ रस बढ़त अधिक अति, ज्यों ज्यों तीय लजात।।