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केसरि रँग छिरकौ तोरी सारी, कपोलनि कौने दियौ री गुलाल।।
मारग चलत आनि चहुँ दिसि तें, पूछति हैं ब्रज बाल।।
नहिं चितवति नहिं बोलति नेकहु, कौने कियौ यह हाल।
‘राम प्रताप’ कहति क्यों न साँची, तोहि मिलै नंदलाल।।