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लाल तुम कहाँ से आये जगे।
अलसी अंखियाँ नैन घुमावत, चरन धरत डगमगे।।
अंजन अधरन भाल महावर, बोलत बोल न लगे।
‘आनंद घन’ पिय जाहु वहीं तुम, जहाँ तुम्हारै सगे।।