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मेरो मन भावना आयौ नहिं आली।।
लागे मास असाढ़ री सजनी, सब कोऊ मंदिर छावै।
हमरे मंदिरवा कों छावै, सिर पर आयौ सावना।।
भरि गये ताल सरोवर सजनी, बोले हैं दादुर मोरा।
चातक बोल कुइलिया ए, पपीहरा जिय कौ जालना।।