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ऐसौ रँग न डारौ मोपै सुघर श्याम, मेरो बार बार तोकौं है प्रनाम।।
मै इत की नहीं बरसानौ गाँव, वृषभानु सुता मेरौ राधा नाम।।
कहें ‘मारतंड’ अब भई है शाम, मोहि जान दै री मेरौ दूरि गाम।।