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तोसौं बिन होरी खेलें न जाउँगी।।
बरस बाद आयो यह फागुन,
अब तो अबीर लगाउँगी,
अब कित जात नन्द के जाये,
मारों भरि पिचकारी, मारों भरि पिचकारी।।
रंग में रगूंगी मैं, संग में नचूंगी मैं,
फाग संग तेरे गाऊँगी।
यह त्यौहार न छोड़ांगी सूनों,
चाहे दीजै तू गारी, चाहे दीजै तू गारी।।