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नैंननि में पिचकारी दई, मोहि गारी दई, होरी खेली न जाय।।
तेरे लंगर लंगराई मों सों कीन्ही, केसरि कींच कपोलनि दीन्हीं,
लै गुलाल ठाढ़ौ मृदु मुसिकाय।।
नैंक न कानि करत काहू की, आँखि बचावत बलदाऊ की,
पनघट सों घर लों बतराय।।
औचक कुचनि कुमकुमा मारै, रंग सुरंग सीस पै डारै,
अंग लपटि हंसि हा हा खाय।।
होरी के दिनन मों सों दूनों दूनों अटकै, ‘सालिगराम’ कौन जाय हटकै,
यह ऊघम सुनि सासु रिसाय।।