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कौनें बदी ऐसी होरी रे छैला।।
ज्ञान के रंग में ध्यान की केसरि, हित के हाथन घोरी रे छैला।।
पंचरंगी चुनरि इकरंगी करिकें, कीन्हीं रंगनि सराबोरी रे छैला।।
‘जानकी दास’ हा हा करि हारी, तौ हू रसिक नहिं छोरी रे छैला।।