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जब तें धोकौ दैकें गयौ, काऊ के संग नाहिं खेली होरी।।
परसों की कहि गए, मानि गई मैं कैसी भोरी।
बीतो सिगरो बरस, चुनरिया रहि गई है कोरी।।
ऊधौजी तुम जाउ द्वारिका, लै पाती मोरी।
लइयो बेगि लिवाय, उमरिया रहि गई अब थोरी।।
हम दैंइगीं प्राण गमाय, गात की है जाइगी होरी।
कहियो यों समझाय, दरस बिनु तरसै बृज गोरी।।
बृजबाला दईं हैं त्याग, प्रीत याने कुबजा सों जोरी।
कहैं कवि ”घासीराम“, सदा यह बनी रहै जोरी।।