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भैय्या मिलि तौ लै गरे सों नेंक आजु, परब आयौ होरी कौ।
सालिगराम की बटियन में, कहु कौन बड़ी है को छोटी।
जो बड़ छोट की बात करै, ताकी मति मोहि लगै खोटी।।
समता बिनु राखें, रहि जैहै कहाँ समाज।।
परब आयौ होरी कौ।।
धन-जन-कुल-पद काया के मद, छनभंगुर हैं कोरे हैं।
जो भकुआ इन भरम भुलाने, बड़े भाव के भोरे हैं।
इन कागज की नइयनु तें, सरिहै कहा काजु।।
परब आयौ होरी कौ।।
सात सुरन की सरगम में, कहु को सुर ऊँचौं को नीचौ।
जो सुर जब सम पे चढ़ि बोल्यौ, ताने प्रान सदा सींचौ।
सातौ सुर साधें ही, बजिहैं मधुरौ साज।।
परब आयौ होरी कौ।।