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बाट चलत मसकै मेरौ पांव, जाकौ कैसौ स्वभाव।।
ग्वाल बाल लै मेरे घर आवै, मेरे ही अंगना धूम मचावै।
घुसि करै शोर, और तोरै किवार।।
पनघट पै कोई जान न पावै, घट तोरै और कंठ लगावै।
लपिटत आवै गरै कैसौ हार।।
निशि दिन करत बात चोरी की, जानत नाहिं रीति होरी की।
आखिर तौ गौअन कौ ग्वाल।।
‘सालिगराम’ तनिक हंसि बोलै, गुप्त गाँठि हृदय की खोलै।
यह राधे तेरौ रिझवार।।