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लाल तोहि तौ बुलाय गई नथबारी,
वाकौ ऊँचौं अटा खिरकी न्यारी।।
अतलस कौं लहँगौ भल सोहै, ता पर सुरख रंगी सारी।।
पाँयन पायल छमछम बाजै, सीस धरैं गगरी भारी।।
चितैं चटक नैना चमकावति, होड़ करत बिजुली हारी।।
जल भरि जाति भवन अपने कों, टेरि गई तोहि गिरधारी।।
तरे अनेक चरन गहि तेरे, अब हरिजन की है बारी।।