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ऊधों कैसे साधें जोग, मनोहर हत्थी ठोकि गये।।
बारह बरस गोकुल संग खेले, सुख सों बीति गये।
कछु कुचालि हरि में भरि आये, तासों विलमि रहे।।
चलत चलत नों धीर बँधाये, पुनि विश्वास दये।
तीन कोस पै ऐसे विलमे, सब कछु भूलि गये।।
हम ढिंग आवें बात बतावें, मन परतीति जगे।
रोवत रोवत नैन सूजि रहे, पिंजर सूखि गये।।
गोकुल आवें मन भरि जावें, हम उन प्रेम पगे।
बातनि में भरमायौ चाहें, तौ ये प्राण गये।।