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मोहन रोवत राति बितामें, कब आओगे हमरे देस।।
आस दई परतीति जमाई, घटौ कछुक अंदेस।
अवधि बढ़े हू पै ना लौटे, झेले कठिन कलेस।।
मन में मोहन तन में मोहन, मोहन संग प्रदेस।
वे दिन भूलि गये का मोहन, रातिन कियौ प्रवेस।।
खबरि मिली तुमरौ कुबजा संग, बाढ्यौ प्रेम विसेस।
तुम्हरी करनी कौने बरनी, रीझे कुबरी भेस।।
विनय हमारी सुनौ मुरारी, अन्तिम मूक संदेस।
इतने हू पर जो ना आये, रंगें गेरूआ केस।।