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मैया कैसे लावैं धीर, प्राण दरशन कों भटकि रहे।।
ढेर दिना उनकों गये बीते, खबरि कछू ना पाये।
हमरे मन में ऐसी भ्यासी, वे कहुँ विलमि रहे।।
जसुदा के घर भये इक ठौरे, सब मिलि कहन लगे।
हरि दरशन बिन कल न परति है, सुधि बुधि खोय रहे।।
सोच यही है चलत चलत लों, सबकों वचन दये।
हाथ जोरि उन चरननि लोटे, तौ हू न संग लये।।
एक सखी मथुरा तें आई, बाने भेद दये।
कान्हा तो कुबजा सों रीझे, क्यों सिर पटकि रहे।।