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बलम चले पदरेस कां रे, ऊँची अटरिया छवाय।
सुरजी कातै सूतनें, जाकौ निरबेरत दिन जाय।।
चंदन डार लहालही रे, वा पै सुअना लखाय।
पंख पसारै उड़न कों रे, यह रस भीनें रहि जाय।।
कोठे ऊपर कोठरी रे, वामें कारौ नाग।
काटत हू सौं बचि गई रे, काऊ रसिया के भाग।।
सजन सकारें जायेंगे, नैन मरेंगे रोय।
विधना ऐसी कीजियो, भोर कबहुं ना होय।।