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माई लखि न परै यदुराई, सोवत सों जगि आई।।
गोकुल ढूँढ़ौ मधुवन ढूँढौ, चहुँ दिसि हम फिरि आई।
पतौ न पामैं नंद नदन कौ, हम पर रंग कन्हाई।।
नाच तमाशे सब तज दीने, उनसें ही डोर लगाई।
जल्दी आओ रूप दिखाऔ, उर अन्तर धुँधिआई।।
तेरी छवि पर हम सब मोही, हटत न नैन समाई।
इतने हू पर पीर न आवे, काहे बनत कसाई।।
टेर सुनी अन्तरयामी नें, तुरतई बँसुरी बजाई।
धन्य जसोदा तेरे कान्ह कां, क्षण में शोक मिटाई।।