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देखौ री गोरी होरी को खिलैया।।
मैं दघि बेचन जाति वृन्दावन, रंग डारी चूनरि कन्हैया।।
‘राम प्रताप’ ढीठ नहिं मानत, हंसि मन करत ढिठैया।।