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छबि निरखन कों चली री सखी, बंसी जमुना पै बाजि रही।।
बंसी की टेर सुनी सबही ने, सुधि बुधि बिसरि गई।।
पैठि पताल काली नाग नाथ्यौ, नागिन जोर भरी।।