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मथुरा की कुंज गलिन में, होरी खेलि रहे नंदलाल।।
पूरब में राधा प्यारी, पश्चिम में कृष्ण मुरारी,
उत्तर दक्खिन गोपी-ग्वाल।।
उन भरि पिचकारी मारी, नई सारी सुघर बिगारी,
मुख मलि दियौ अबीर गुलाल।।
नये रंग के हौद भराये, छकरन में अबीर लदाये,
यहाँ मचों नवेलौ फाग।।