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बरसानें बनि आयौ रे, मोहन नंदलाल।।
आपुन बैठि कदम तर रे, ग्वाला दिए हैं चढ़ाय।
दौनहिं दौना रहि गये, दधि दियौ है लुटाय।।
उड़त गुलाल लाल ब्रज रे, सब मथुरा लाल।
लाल धार जमुना की, ब्रज रचि दियौ लाल,
ऐसी होरी खेलै साँबरौ, अपनी ससुराल।।
ज्यों मेंहदी के पात नये, रंग रहौ है चुचाय।
उठतौ यौवन आयौ, तिलतिल ठहराय।।
जब सें मुरलिया बाजी रे, मोकों नहिं चैन,
घर अंगना न सुहावै, पल-पल कटै न रैन।
‘सूरदास’ जस गावै, जा सां रैनि बिहाय।।