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मैनें जब तें सुनी मुरली की भनक, मेरौ मन गयौ हाथ सों ए री गुइयाँ।।
मैंने मुरली बजत बहुतेरी सुनी है, बहुतक देखे हैं बैनु बजैया,
रूप सरूप लख्यौ हम लाखनि, पै न मिले चितवन के चुरैया,
जासौ मिटै मेरे जिया की कलक।।
काऊ ब्रजवासी गरै डारी फाँसी, कित गयौ जालिम जाल विछैया,
या मोहन की छबि पर कान्हर, माचि रही बलराम दुहैया,
कृष्ण रसिक की देखी झलक।।