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रँगीले रंग महल में, खेलि रहे दोऊ फाग।।
दशरथ-सुत और जनक-नन्दिनी, उमँगि-उमँगि अनुराग।।
भींजि गई सिय की सिर सारी, नवल लाल की पाग।।
‘मधुर अली’ तृन तोरि विलोकत, सरसत सरस सुहाग।।