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मैं तो डारौगी रंग गुलाल ए सइयाँ, सालूरा जंजाल है।।
माह गये फागुन रितु आई, होरी की आई बहार।।
उड़त गुलाल लाल भये बादर, रंग की परत फुहार।।
अपने पिया सों होरी खेलों, बीती जाति बहार।।