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हेली कैसे बचों, मेरे नंदनंदन पीछें परौ।
ऐसी सीख दै मेरी सखी सयानी, वाके रंग न रचौ।।
कबहुँक कर में ढफ गहे री, उठै दोहरा गाय।
कबहुँक देखि नैन ललचावै, उठि हा हा खाय।।
नाम और कौ लै सखी री, टेरै मोहि सुनाय।
हों समुझों जो वह कहै री, कछु न रहे बताय।।
नैनन देखत ही बनैगी, बनत नहीं कछु आन।
हौं डरपौं जिय आपने, उत ‘जगन्नाथ’ सुज्ञान।।