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मन मतवाला जपूँ कैसे माला।।
ग्यान गुदरी के दस दरवाजे, आखिर की खिड़की में पड़ गया ताला।।
न्हाइ धोइ आसन पर बैठी, भ्रमर जाल में हाल बेहाला।।
यह चंचल मन बस नहि मेरे, मेरी समझ में जम गया पाला।।
कहत ”कबीर“ सुनौ भाई साधो, दरशन दीजै मोहि दीन दयाला।।