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हम सब तज दीनौ खान पान, कहाँ पामैं अपनौ बिछुड़ौ ललन।।
यह दिन फाग सुहाग भरौ, अब को खेलै फाग को देहि रतन।।
कुबिजा सौं अनुराग बढ़ायौ, सब गोकुल पै करे टेढ़े नयन।।
नर नारी करि रहे विचार, यदि नहिं आमै सब छोड़ौ भवन।।
अब देखौ कान्ह हमें चैन नाहि, हम तेरे ही नाम को करती रटन।।