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ऊधो फूली साखि उजारी।।
पाँइ परीं उन चरननि लोटीं, तौऊ दया न धारी।।
जब रथ हाँकि चले मधुबन कों, सिसकि रहे नर नारी।
बुरौ होइ वा सुफलक सुत कौ, जाने अपति बिचारी।।
बारह बरस तौ सुख सों बीते, अब ही बखत भयौ भारी।
अब तुम लौटि जाउ मथुरा कों, पठवहु फूल हजारी।।