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भवानी नगर कोट बारी।।
देवी नगर कोटि बारी,
नगरकोट नागर रचि राखौ कोयल बोलै बानी।।
पहिरें देवी सारदा नवल गुदी में हार,
गजरी के नीचें चुरीं चटकीली चार,
बाजूबंद पहिरें चारि काँकरि करैली चाल जी।
सुए पिये चोलना पै मगजी छिटकि रही,
घूमदार घाँघरे पै डोरी सी लटकि रही,
देवी के दरस कों दुनियाँ तरस रही,
पैजनियाँ झनकार ।। दुर्गे नगर कोट।।
बैठी देवी पारवती आवति सुगन्ध ब्यारि,
लक्ष्मी जो आईं देव तैंतीस ने ऐसे कही,
छप्पन कोट जोगिनी और चण्डिका हैं जाके पास जी।
आठों पहर ठाढ़ी सब सारदा के जोरें हाथ,
तुही सिखावन हारी ।। दुर्गे नगर कोट०।।