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होरी खेलै लाल, ढफ बाजै ताल, जैसे झनन झनन झन नन नन नन।।
तेल फुलेल अबीर अरगजा भ्रमर उड़त, जैसें भन नन नन।
निकसीं कुँअरि ए झुमरि खेलन होरी, हस्ती छुटत जैसे सन नन नन।।
कँचन की पिचकारी लाइंर् भरि भरि, डारति सुरँग सबके तन नन।
केसरि रंग की क°च मची है, उमड़ि घुमड़ि धन नन नन नन।।
बृन्दावन की कुंज गलिन में, ग्वाल बाल सब सखन संग।
‘तानसेन’ के प्रभु हो होरी खेलें, आनँद भयौ सबके मन नन।।