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ऊधौ! बावरे भये हौ, बावरे भये मोरी जानि।।
ऊधौ! कौन गुपाल कहाँ कौ बासी, का सों है पहचानि।
का के कहे को सँदैसौ ल्याये, काहि सुनावत आनि।।
गोपी! नँद कौ गुपाल गोकुल कौ वासी, वा सों है पहचानि।
वाके कहे को सँदेसौ ल्याये, तुमहिं सुनावत आनि।।
ऊधौ! अपनी मौज भ्रमर उड़ि बैठत, फूल महा रस जानि।
फिरि वह बेलि जरौ वा सूखौ, वाहि कहा हित हानि।।
ऊधौ! प्रथम नाद मन हरौ है मृगन कौ, राग रागिनी ठानि।
फिरि वह ब्याल विषाद विबस करि, मारत है सर तानि।।
ऊधौ! पय प्यावत पूतना निपाती, ऊखल बाँधे पानि।
सूपनखा ताड़का पछारी, ‘सूर’ सदा यह बानि।।