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ए री मेरी गैल न छाँडैं़ साँवरौ, क्यों कर पनियाँ जाउ।
हौं लाजनि डरपति रही, मेरौ धरहि न कोऊ नाउँ।।
जित देखौ तित देखियै री, रसिया नन्द कुमार।
मारग में ठाड़ौ रहै मोहि, पलकन करत जुहार।।
लकुट लियें आगें चलै री, पंथ निहारत जात।
मोहि निहारै आनि के सखि, चितवत मृदु मुसक्यात।।
जमुना जल गागरि भरौं री, जब सिर धरों उठाय।
उड़ि अंचल कंचुकि गिर्यौ, मेरौ हियरा लखि ललचाय।।
गागरि मारै काँकरी री, एड़ी छुआवत लात।
इन बातनि कैसें बनै मोहि, रोकत आवत जात।।
ब्रज घर घर चाँचरि मच्यौ री, प्रकट होत अनुराग।
अब कहु कैसी बीति है, मेरे सिर पर आयौ फाग।।