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ए मद छकी ग्वालिनि तेरौ जुबना जोर,
हँसि हँसि घूँघटरा क्यों न खोलै।।
फागुन मास में मान करति है, काहे मुख सां सूधें क्यों न बोलै।।
रूप कौ भार दिना दस कौ री, बाँट गुमाननि तौलै।
औसर पाय कै आनँद करिलै, काहे बन बन ऐंड़ी बैंड़ी डोलै।।