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जिनके आँगन नाचत नितप्रति, मोहन करतल दै दै तारी।।
परम प्रिया मनमोहन जूकी, प्रेम पगी रस विधप गँवारी।
जिन्ह के हाथ खात माखनदधि, लाड़ लड़ावत दै-दै गारी।।
मुरली धुनि सुनि भागत सगरी, लोक लाज गृह काज विसारी।
चाहत चरण धूलि नित तिनकी, दीन अकिन्चन प्रेम भिखारी।।